ठिठुर रहा है ज़मीं आसमाँ
नींद फिर भी आती है 
जानबर है मगर समझ है उसे 
मज़बूरी में सिकुड़कर सो लेता है

ठिठुर रहा है ज़मीं आसमाँ नींद फिर भी आती है जानबर है मगर समझ है उसे मज़बूरी में सिकुड़कर सो लेता है

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